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Showing posts from August, 2017

दिल से सोचना हमने जीवन मे क्या बाँटा और क्या इकट्ठा किया

एक बार एक संत ने अपने दो      भक्तों को बुलाया और कहा आप      को यहाँ से पचास कोस जाना है। एक भक्त को एक बोरी खाने के      समान से भर कर दी और कहा जो      लायक मिले उसे देते जाना और एक को ख़ाली बोरी दी उससे       कहा रास्ते मे जो उसे अच्छा मिले       उसे बोरी मे भर कर ले जाए। दोनो निकल पड़े जिसके कंधे पर      समान था वो धीरे चल पा रहा था ख़ाली बोरी वाला भक्त आराम से       जा रहा था थोड़ी दूर उसको एक सोने की ईंट      मिली उसने उसे बोरी मे डाल      लिया थोड़ी दूर चला फिर ईंट मिली उसे      भी उठा लिया जैसे जैसे चलता गया उसे सोना      मिलता गया और वो बोरी मे भरता      हुआ चल रहा था और बोरी का वज़न। बड़ता गया       उसका चलना मुश्किल होता गया      और साँस भी चढ़ने लग गई एक एक क़दम मुश्किल होता      गया । दूसरा भक्त जैसे जैसे चलता गया      रास्ते मै जो भी मिलता उसको      बोरी मे से खाने का कुछ समान      देता गया धीरे धीरे बोरी का वज़न      कम होता गया और उसका चलना आसान होता      गया। जो बाँटता गया उसका मंज़िल      तक पहुँचना आसान होता गया जो ईकठा करता रहा वो रास्ते मे      ही दम तोड़ गया दिल

हमारी इस छोटी सी कोशिश से किसी भी सक्षम के दिल मे गरीबों के प्रति हमदर्दी का जज़्बा ही जाग जाये

मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जा कर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका। अंदर जा कर मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हो? जब कि आप खुद भी रोती हो। उस ने जवाब दिया भाई साहब इस के पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उन के जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इस की पढ़ाई का खर्च बामुश्किल उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और रोज़ाना घर देर से आता है। जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिस की वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है। मैने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया। इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से मैं सब्जी मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रो