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एक साथ मिलकर लड़िये अन्यथा वही होगा जो उपरोक्त कुआँ खोदने वालों का हुआ.

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*एक बार तथागत बुद्ध अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे. रास्ते में कुछ गड्ढे खुदे पड़े थे और उनके अंन्दर नर कंकाल पड़े थे. उनको देखकर बुद्ध के शिष्य ने पूछा, "तथागत, इन गड्ढों में ये नर कंकाल क्यों पड़े हैं." तथागत चुप रहे. फिर कुछ दूर चलने के बाद वहाँ पर भी गड्ढों में नर कंकाल पड़े मिले. तथागत के शिष्य ने फिर पूछा, "तथागत, इन गड्ढों में नर कंकाल क्यों पड़े हैं?" तथागत बुद्ध ने कहा, "इन लोगों को प्यास लगी थी, इन लोगों ने कुआँ खोदना चाहा, लेकिन ये लोग अलग-अलग कुआँ खोदने में लग गए और कुआँ खोदते-खोदते ही मर गए. न तो उनको पानी मिला, न ही इनकी प्यास बुझी और कुआँ खोदते खोदते मर गये. यदि ये लोग एक साथ मिलकर एक कुआँ खोदते तो कुआँ भी खुदता, शक्ति भी कम लगती, इनकी प्यास भी बुझती और ये जिंदा भी रहते."* *आज ठीक इसी तरह  समाज के लोग अलग-अलग लड़ रहे हें और अपनी शक्ति को नष्ट कर रहे हैं, जिससे उनकी समस्यायें खत्म होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं. इसलिये एक साथ मिलकर लड़िये अन्यथा वही होगा जो उपरोक्त कुआँ खोदने वालों का हुआ.* .